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कहां गय अखाड़ा, कहां गय खुड़वा, कबड्डी अउ कहां गय फुटबॉल, वॉलीबाल, डंडा, पचरंगा, सुर, छुअउल अउ अंधियारी-अंजोरी .ये सब खेलकूद गांव मन ले निरमामुल नंदागे, अब तो बस जेती देखबे तेती किरकेट के छोड़े कोनो कांही खेलबे नइ करय. गांव अइसन कभू सपना मं नइ सोचे रिहिस होही के जइसे जेल म कैद देवकी के बेटा मन एक-एक करके परलोक सिधारत गिस तइसन कस हाल ये खेल अउ अखाड़ा मन के हो जाही? फेर होनी ला कोन रोक सकत हे. जउन होना होथे उही होथे.
कभू खेलकूद अउ अखाड़ा मं मोर गांव के नांव अतराप मं बाजे रिहिसे. जिला स्तर तक मं बालीबाल, फुटबाल अउ कबड्डी मं इनाम जीत के लाय रिहिन हे, इहा के खिलाड़ी मन. कोन जनी अब का कुकुर चाब दिस, सांप सूघ दिस ते बिच्छी काट दिस, एक झन कोनो मरे रोवइया नइ मिलय. काहत लागय इहां के अखाड़ा, खेलइया मन ला, घंटो गुजार दय किसम-किसम के करतब देखाके. दूरिहा-दूरिहा के मन आ-आ के इहां के अखाड़ाबाज मन ला जब कोनो जघा कार्यक्रम होवय तब बला-बला के लेगय. फेर अब का होगे, सुन्ना परगे गांव, मरे रोवइया कोनो खिलाड़ी नइ मिलय. का होगे, एके कारन हे, बाहिर ले राक्षस मन झपागे., राक्षसिन आगे. अरे कोनो दारू, टीवी अउ मोबाइल ,येमन अइसन जहर घोर दिन के सबके सब दरुहा होगे, टीवी मोहनी डार दिस, अइसे दिन के ओकर फंदा मं अइसे फंसगे हे जइसे मछरी मछिंदर के जाल मं फंसे के बाद छटपटावत रहिथे. मोबाइल तो कैंसर कस रोग बनगे हे. लइका, जवान, बुढ़वा, जेला देखबे तेला पिलवा पोसवा बेटा-बेटी मन ला जइसे ओकर दाई-ददा, दादी-दादा मन पोटारे बइठे रहिथे तइसे कस सबके हाल होगे हे. काला बताबे, कतेक ला गोहराबे, जतके गोठियाबे, बखानबे ततके रोग बाढ़त जात हे. देख रे आंखी, सुन रे कान कस ये पीरा हा होगे हे.
ओ दिन नंदागे, रात मं खा-पी के रातकिन अखाड़ा खेले अउ देखे ले जात रेहेन. पछीना के ओगरत ले कई किसम के करतब करन. देखइया मन अकचका जांय, अरे बाप रे, हाथ-गोड़ टूट जाही, मूड़ी फूट जाही, अइसन अलकरहा खेल मत खेले करव, अइसे काहय. अकबका जांय. अरे खिलाड़ी मन के शरीर घला वइसने चंगा राहय, दू-चार झन संग निपटे बर काफी राहय. कस के दूध पियैं, खाना खांवय. दाऊ, शराब, गांजा-भांग ये सब ला झटक लिस. अब तो जेने मेर पाबे तेने मेर नवजवान बेटा मन ला, जउन कभू पथरा तोड़ के पानी ओगराय के दम रखयं, बंजर भूमि मं नांगर चला-चला के ओमन फसल लेवयं? का होगे आज ओमन ला, काकर नजर लग गे. जुआ-चित्ती, चौसर खेले मं भुलाय रहिथे. काम करे मन के नइ होवय ओकर मन. दाई-ददा, गोसइन अउ नान-नान लोग लइका रोवत रहिथे घर मं. कहूं बरजही गोसइन हर तब उलटाके ओकर पीठ ऊपर डंडा बरस जथे. लगथे गांव मन मं सरग नइ नरक झपागे हे. सब घर परिवार अउ समाज मं जमराज के दूत पहरा देये ले धर ले हे. डर के मारे सब जुन्ना जिनिस मन ला छोड़ दे हें अउ नवा-नवा रकम ला अपनावत जाथे.
ओ दिन मन ला सुकुन मिलिस जब एक ठन गांव मं गेंव तब इसकूल मं लइका मन गिल्ली, भंवरा, सुर, डंडा-पचरंगा, खो-खो, छुअउल, तिरी-पासा अउ अंधियारी-अंजोरी के खेल खेलत रिहिन हे. ओ लइका मन के खेल ला देख के फूले नइ समायेंव. चंदैनी गोंदा कस महके लगिस ओकर खुशबू. मन तब अउ गदक गे जब ओ इसकूल मास्टरिन दीक्षा चौबे ला गिल्ली खेलत देखेंव. ओ दृश्य ला देख के अपन हांसी ला रोक नइ सकेंव. ओकर बाद तो ओहर गेड़ी मं चढ़के सब ला देखइस अउ किहिस- देखव, महूं कोनो खिलाड़ी ले कम नइहौं. मैं केहेंव, शाबास मैडम- तोर इसकूल मं कम से कम जउन जुन्ना खेलकूद हे ओ जिंदा करे हस, अइसन जागरित करत राह. तोला देखके सब अइसने शुरू करही, हमर नंदावत जात हे जुन्ना खेलकूद, पारंपरिक खेल, संस्कृति तउन मन मं जान आ ही, खुले हवा मं सांस लिही. तैं सबके प्रेरक बन. एक दीया ले सबो दीया जलाय जथे. अइसन बगरही सब कोती अंजेर. तोर ये थोरकिन कोशिश ले निसपरान खेल मन मं कहूं जान आ जही, तब तोला वो गांव वाले मन, उहां के बिगड़त खेल-खिलाड़ी मन तोला दुआ दिही. बधाई.
(परमानंद वर्मा छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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FIRST PUBLISHED : August 31, 2022, 16:45 IST
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