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छत्तीसगढ़ी म पढ़व- मंगतुगुड़ी अउ चीतवाडोंगरी गांव के नामकरण

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ए गुड़ी के आगु दूरिहा दुरिहा ले सोर उड़े अउ काबर नइ उड़तिस काबर कि ओ गांव म ओ समे मंगतू बाबा राहत रिहिस. जेला मंगतू ठाकुर के नाव ले जाने जाय . ठाकुर जी ह सत्य के उपासक रिहिस हे. उहें के तीर तार वाले मन बताथे कि एक घांव के बात आय जब गांव के सियान ह लकड़ी फाटा लाए बर सिवनी गे रिहिस.

आवत-आवत रद्दा म ओकर गाड़ा के दुनो कनखीला निकल गे. कनखीला के निकले ले चक्का हिट (निकल) गे. कोनो चिन्ह न पहिचान अब कइसे करँव कहिके सियान ह तरवा धर के बइठ गे . जंगल म मउत ह दिखे बर धर लिस जग जग ले फेर कोनो करा आसरा के ठिकाना नइ दिखिस |आखिर म हलाकान हो के ओ सियान ह मंगतु ठाकुर के सुमिरन करिस- बबा कोनो तोर सत ह आजो हे त अपन सत के ताकत ले ए साधक के रक्षा करो, रक्षा करो मेंहा तोला दू नरियर चढ़ाहूं कहिके बदना बदिस. सत के प्रताप ले लकड़ी ले भराए ओकर गाड़ा ह गांव आगे. बिना कोनो रोक – छेक के.

अइसने अउ कानो गोठ हे जेकर ओ डाहर कतको प्रमाण मिलथे. काकरो मवेशी कभू गंवागे त पवित्र मन ले बाबा के सुमिरन करे ले मवेशी ह हाथ लग जथे. लांघन भूखन मनखे ओकर कुंदरा म सरन लेवय. बाबा ह बिमरहा मन के सेवा करय तिही पाय के लोगन मन परमार्थी पुरुष काहय. तभे तो ओकर नाव म अतना ताकत रिहिस हे.

ओकर इंतकाल (निधन) के बाद आजो घलो ओकर देवता अस पूजा पाठ करके असीस लेथे. पहिली बाबा के आसन ह लकड़ी के रिहिस. उही करा श्रद्धालु मन अपन मनोकामना बर पूजा पाठ करय. मनोकामना पुरा होवत गिस ताहन ओ आसन ल माटी के बनवइन कुछ दिन के गे ले पखना के पक्का बनवा डरे हे. गंवाए माल मत्ता मिले के बाद इही – गुड़ी म माटी के गाय, बइला, नही ते घोड़ा चघाए के बहाना अपन श्रद्धा फूल ल चघाथे. आजो घलो सड़क के कोर म बने मंगतूगुड़ी म कतको बइला घोड़ा अउ गाय के मुरती देखे जा सकत है. आजो घलो मंगतू ठाकुर के मंगतू गुड़ी ह आस्था अउ बिसवास के केन्द्र आय.

मंगतू गुड़ी ले आधा किलोमीटर आगु डाहर जाबे त सड़क के डेरी बाखा म भारी जंगल हे तेंदू ,आंवरा, लीम अउ हर्रा बहेरा के. इही जंगल म एक ठन नरवा हे जिंहे बाघ, चीता, तेंदुआ मन सुसी भर पानी पीयय. इसी जंगल झाड़ी के बीच म अंदाजी पैतालीस पचास फुट ऊंच पहाड़ी हे जेला डोंगरी के नांव ले जानथन . इही डोंगरी के आजु बाजु दू ठन गुफा हे. एक ठन नान्हें हे त दूसर ह बड़े जन. छोटे गुफा के मुहाटी ह अढ़ई फीट व्यास के अउ बड़े गुफा के मुहाटी ह करीबन दू फीट व्यास अतका होही. भीतरी देखबे त भारी डर लागथे. काबर कि भीतर म दस गियारा फीट खोह हे जउन ह खाल्हे डाहर सुल्लू (सकरा )होवत गेहे. आगु डाहर जा के जेवनी डार मुरक जथे. अइसे केहे जाथे ए गुफा मन म चीता राहय तिही पाए के एला चितवा डोंगरी केहे जाथे . चीता ह इही गुफा म दिन भर अराम करे के बाद संझा कना गुफा के उप्पर आ के बइठ जाये. जिंहा ले दु तीन किलोमीटर तक हरखेली (असानी से) देखे जा सकथे. अइसे लागथे कि चीता ह अपन शिकार खातिर ठीहा ल बनाए होही. जउन जघा म चीता बइठे ओ जघा ह गुफा ले दस फूट ऊंचा म पखना ले बने मचान कस लागथे.

इकराज सिंह भामरा के मानना हे कि चीता ह समतल भुईंया कस ढिलवा, अखरा-पखरा अउ जंगल झाड़ी म जल्दी चढ़ – उतर सकथे. तभे तो अइसन अड़चन वाले जघा म राहत रिहिस हे. काबर दुसरा जानवर मन म अइसन विशेषता देखे बर नइ मिले. पहिली कस अब न जंगल हे न जीनवर तभे तो एकर माड़ा म अब चीता घलो नइ दिखै. एक डाहर हमन जंगली जीव जन्तु के जतन करो कथन अउ दूसर डाहर जंगल ल उजाड़त जाथन त उमन तो अइसने बिन मारे के मारे मरत जात हे. अब बतावौ कहां राखे जाये. कभू समे अइसनो आ झन जय के सरकस म घलो सेर अउ भालू देखे बर नइ मिल पाही का?

(दुर्गा प्रसाद पारकर छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)

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