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पेंशन घोटाले में कैलाश विजयवर्गीय को बड़ी राहत : कोर्ट ने बंद किया केस, ये रही वजह

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इंदौर. बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को आज कोर्ट से बड़ी राहत मिल गयी. इंदौर पेंशन घोटाले को विशेष न्यायालय ने समाप्त कर दिया है. 17 साल बाद भी सरकार ने इस केस को चलाने की मंजूरी नहीं दी इसलिए कोर्ट ने इस केस को समाप्त कर दिया. विजयवर्गीय के खिलाफ 33 करोड़ के पेंशन घोटाले में कांग्रेस नेता के के मिश्रा ने कोर्ट केस किया था.

देश भर में चर्चित रहे पेंशन घोटाले में बीजेपी महासचिव और तत्कालीन इंदौर मेयर कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर की स्पेशल कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. 17 साल बाद भी सरकार ने अभियोजन की अनुमति जारी नहीं की. इसी वजह से विशेष न्यायालय ने इस प्रकरण को ही समाप्त कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन स्वीकृति के इंतजार में केस को अनंतकाल तक लंबित नहीं रखा जा सकता. भविष्य में परिवादी को अभियोजन की स्वीकृति मिल जाती है तो वे दोबारा इसे शुरू करने के लिए स्वतंत्र रहेंगे.

क्या था मामला

2005 में इंदौर नगर निगम के मेयर कैलाश विजयवर्गीय थे. उस समय कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने 33 करोड़ के पेंशन घोटाले का आरोप कैलाश विजयवर्गीय पर लगाया था. आरोप ये था कि 2005 में केंद्र सरकार ने निराश्रित, कल्याणी और दिव्यांग लोगों के लिए इंदिरा गांधी पेंशन योजना की घोषणा की थी. इसके तहत पात्र लोगों को 300 रुपये प्रतिमाह पेंशन दी जानी थी. इस राशि में केंद्र और राज्य सरकार दोनों को 50-50 फीसदी हिस्सेदारी देनी थी. केंद्र सरकार ने स्पष्ट आदेश दिए थे कि पेंशन के लिए पात्र लोगों को सिर्फ राष्ट्रीयकृत बैंकों और डाकघरों के माध्यम से ही भुगतान किया जाएगा. किसी दूसरे माध्यम से भुगतान नहीं होगा.

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33 करोड़ का पेंशन घोटाला

के के मिश्रा का आरोप है कि कैलाश विजयवर्गीय ने महापौर बनने के बाद परिषद की पहली बैठक में ही संकल्प पारित करवा लिया कि पेंशनधारियों को नंदानगर सहकारी साख संस्था के माध्यम से भुगतान किया जाएगा. अपात्र लोगों को जमकर पेंशन का भुगतान किया गया. जांच में घोटाले की रकम 33 करोड़ से ज्यादा आंकी गई थी. मिश्रा ने कोर्ट में एक परिवाद दायर कर तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय, महापौर परिषद यानि एमआईसी के तत्कालीन सदस्य रमेश मेंदोला, पूर्व महापौर उमाशशि शर्मा, तत्कालीन सभापति और अब सांसद शंकर लालवानी, तत्कालीन निगमायुक्त संजय शुक्ला समेत 14 लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी, अमानत में खयानत, कूट रचना का आरोप लगाते हुए इन पर आपराधिक प्रकरण चलाने की मांग की थी.

17 साल में सरकार ने नहीं दी मंजूरी

मामला जन प्रतिनिधियों का था इसलिए केस चलाने के लिए सरकार की मंजूरी जरूरी थी. लेकिन सरकार से अब तक इसकी अनुमति ही नहीं ली, इसलिए विशेष न्यायाधीश मुकेश नाथ ने अभियोजन स्वीकृति के अभाव में प्रकरण को समाप्त कर दिया.

सरकार ने जान बूझकर बचाया

के के मिश्रा ने आरोप लगाया है कि जांच में आरोप सिद्ध होने के बाद भी राज्य सरकार ने जानबूझकर केस चलाने की इजाजत नहीं दी. उन्होंने बताया कि कभी इस मामले की जांच कलेक्टर को सौंपी गई तो कभी कमिश्नर को. मामले को लेकर एनके जैन आयोग भी गठित हुआ था. इस घोटाले का रिकार्ड जलने की बात सामने आने के बाद मैंने खुद भोपाल जाकर आयोग के समक्ष दस्तावेज प्रस्तुत किए थे. सरकार ने अभियोजन की  स्वीकृति देने के बजाय विधानसभा की उपसमिति गठित कर दी, जिसने अब तक रिपोर्ट ही नहीं सौंपी. माननीय न्यायालय ने मामले को खारिज नहीं किया है,उसे बंद किया है. मुझे फिर निर्देशित किया कि आप अभियोजन की स्वीकृति लाएं ताकि केस फिर नए सिरे से चालू किया जा सके. इस लड़ाई को मैं पूरी ताकत के साथ लड़ूंगा. भ्रष्टाचारियों को कौन बचा रहा है. इस केस से स्पष्ट हो चुका है. हमने हाईकोर्ट में भी आवेदन किया है. मुझे उम्मीद है कि माननीय न्यायालय मुझे न्याय देगा.

15 महीने रही कांग्रेस सरकार

इस मामले में बीजेपी उल्टे कांग्रेस पर ही आरोप लगा रही है. बीजेपी प्रवक्ता उमेश शर्मा का कहना है कांग्रेस हमेशा बेबुनियाद आरोप लगाती है. प्रदेश में 15 महिने कांग्रेस की सरकार थी. तब कमलनाथ ने तरुण भनोट,कमलेश्वर पटेल समेत तीन मंत्रियों की समिति बनाई थी. उन तीनों ने भी माना था कि इसमें कैलाश विजयवर्गीय समेत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई भी सबूत नहीं हैं.जब कांग्रेस पार्टी की समिति कुछ नहीं कर पाई और उसे मुंह की खानी पड़ी. कैलाश विजयवर्गीय अपनी उज्जवल छवि के साथ वापस खडे़ हुए हैं.

Tags: Kailash vijayvargiya, Madhya pradesh latest news

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