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यहां गरीब छात्रों का सपना हो रहा साकार, निःशुल्क कोचिंग कर 10 साल में 65 बच्चे बने डॉक्टर

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मनमोहन सेजू/बाड़मेर. देश की बहुप्रतीक्षित नीट परीक्षा के परिणाम हाल ही में जारी हुए हैं. इन परिणामों में राजस्थान के बाड़मेर जिले के फिफ्टी विलेजर्स सेवा संस्थान के बच्चों ने एक बार फिर बाजी मारी है. इस बार 27 अभ्यर्थियों ने इस परीक्षा को सफलतापूर्वक पास किया है. 10 साल पहले शुरू हुआ यह संस्थान अब तक लगभग 65 छात्रों को डॉक्टर बना चुका है, वहीं बिना फीस लिए पढ़ाई करवाने वाला यह संस्थान देश के चर्चित संस्थानों में अपनी जगह बना चुका है.

भारत-पाक सीमा पर बसे सरहदी बाड़मेर जिले में फिफ्टी विलेजर्स सेवा संस्थान देश की सबसे चर्चित संस्थानों में से एक है. वजह है यहां से निःशुल्क पढाई कर डॉक्टर बनने के सपने को साकार करना. गरीब तबके से आने वाले ऐसे होनहार छात्र जिनकी पढ़ाई छूटने वाली थी और कोई मजदूरी की राह पर चलने वाला था. कुछ सपने थे जो मन मे दबे रह गए थे, लेकिन फिर फिफ्टी विलेजर्स ने उन छात्रों के सपनों को नई उड़ान दी और अब डॉक्टर बनने में साथ देकर उनका सपना साकार किया है.

यह कहानी है उन छात्रों की जिन्होंने गरीबी के कारण कई बार भूखे रहकर रात गुजारी तो कोई चाय की थड़ी (टपरी) पर मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालता था. दरअसल वर्ष 2012 में डॉ. भरत सारण और उनकी टीम के द्वारा फिफ्टी विलेजर्स सेवा संस्थान की शुरुआत की गई. इस संस्थान का उद्देश्य उन छात्रों का सपना पूरा करना है जो पढ़-लिख कर डॉक्टर बनना चाहते हैं, लेकिन उनके पास साधनों का अभाव है. अब तक इस संस्थान से 65 स्टूडेंट्स अलग-अलग मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले चुके हैं.

इनका यह है कहना
शिवपुरी, मध्य प्रदेश मेडिकल कॉलेज में प्रशिक्षित बामणोर निवासी डॉ. वभूताराम नेहरा बताते हैं कि आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण एकबारगी तो उन्होंने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ने का मन बना लिया था, लेकिन उसके बाद फिफ्टी विलेजर्स सेवा संस्थान में रहकर 12-13 घंटे सेल्फ स्टडी की. यहां खाना, रहना, पढ़ाई नि:शुल्क करवाई जाती है.

एम्स ऋषिकेश से एमबीबीएस करने वाले बाड़मेर के भूरे की बस्ती निवासी डॉ. खेताराम जयपाल ने बताया कि दसवीं उतीर्ण करने के बाद मेरा सपना था कि ग्यारवीं में साइंस लेकर डॉक्टर बनूं. लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण गांव में रहकर ही ग्यारवीं कला वर्ग से उतीर्ण की. पढ़ाई के साथ मजदूरी करने लगा. इसके बाद फिफ्टी विलेजर्स से दोबारा ग्यारवीं साइंस कर पढ़ाई जारी रखा और वर्ष 2017 में एम्स ऋषिकेश में चयन हो गया. वर्तनमान में इंटर्नशिप कर रहा हूं.

हाल ही में जारी हुए नीट रिजल्ट में सफल होने वाले शेराराम निवासी रतरेडी कल्ला ने बताया कि उनके पिता जोधपुर में सब्जी का ठेला लगाते है. घर में छह बहन और तीन भाई हैं. ऐसे में घर का गुजारा चलाना मुश्किल था. दसवीं तक की पढ़ाई अपने फूफा के पास रहकर की और उसके बाद अब नीट में सेलेक्शन हो गया है.

पाकिस्तान सीमा से सटे बींजासर गांव निवासी फताराम ने बताया कि उनके पिता दिव्यांग हैं. सीमावर्ती इलाका होने के कारण यहां शिक्षा का स्तर ठीक नहीं था. दसवीं में 67 प्रतिशत होने के बावजूद फिफ्टी विलेजर्स में रहकर पढ़ाई को जारी रखा. दो बार असफलता के बाद तीसरे प्रयास में सफलता हाथ लगी.

हर साल 50 बच्चों को दिया जाता प्रवेश
हर साल इस संस्थान में 50 छात्रों को प्रवेश दिया जाता है. यह ऐसे बच्चे होते हैं जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उन्हें दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ती है. इन छात्रों को सरकारी स्कूल में जीव विज्ञान विषय से दाखिला दिलाया जाता है और फिर नीट परीक्षा की कोचिंग दी जाती है.

65 छात्र  अलग-अलग मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रहे
फिफ्टी विलेजर्स के संस्थापक डॉ. भरत सारण के मुताबिक साल 2012 में शुरू हुए इस संस्थान में अब तक 65 स्टूडेंट्स अलग-अलग मेडिकल कॉलेज व एम्स में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे हैं. इसके अलावा लैब असिस्टेंट में 10, राजस्थान पुलिस में चार, कृषि में छह, रेलवे में एक और बीएससी-बी.एड में 33 छात्रों का चयन हो चुका है. यह संस्थान भामाशाहों के सहयोग से चलती है. दस साल में अब तक इस संस्थान को डेढ़ करोड़ रुपये का सहयोग मिल चुका है.

Tags: Barmer news, Medical student, NEET, Rajasthan news in hindi

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