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MP पुलिस में पहली बार 19 देसी डॉग शामिल, जवानों की तरह हुई ट्रेनिंग-एग्जाम, अब मिलेंगी सभी सरकारी सुविधाएं

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भोपाल. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद शिवराज सरकार ने मेड इन एमपी डॉग तैयार कर लिए है. इन सभी 19 देशी डॉग की अब एक पुलिसकर्मी की तरह विभाग में भर्ती भी की गई है. सभी डॉग को पुलिस मुख्यालय स्तर पर गठित आईपीएस अफसरों की कमेटी के कठिन एग्जाम से होकर गुजरना पड़ा. इनकी पोस्टिंग अलग-अलग जिलों में की गई है. इन सभी को भर्ती से लेकर रिटायर्टमेंट तक सभी सरकारी सुविधा मिलेगी. इन सभी देशी डॉग से लॉ एंड ऑर्डर और पुलिस इन्वेस्टिगेशन की ड्यूटी ली जा रही है.
मध्य प्रदेश पुलिस मे पहली बार विदेशी के साथ भोपाल के डॉग पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में ट्रेनिंग के बाद तैयार किए गए 19 देसी डॉग की सर्विस ले रही है. इसके लिए पुलिस विभाग ने देशभर से अलग-अलग नस्ल के देसी डॉग खरीदे थे. 3 से 6 महीने के पिल्लों की 9 महीने की ट्रेनिंग हुई. डॉग पुलिस ट्रेनिंग स्कूल के डीएसपी नीरज ठाकुर ने कहा कि ट्रेनिंग के बाद इनके हैंडलर और सभी 19 डॉग का फाइनल एग्जाम पुलिस मुख्यालय स्तर पर आईपीएस अफसर रैंक के अधिकारियों की गठित कमेटी ने लिया.

माहिर ड्रग ट्रैकर हैं सभी डॉग

सभी डॉग फिजिकल परीक्षा में पास हो गए. इनमें 12 स्निफर और 7 ट्रैकर, नारकोटिक्स डॉग हैं. डॉग्स के सूंघने की पॉवर बेहद जबरदस्त होती है. इनका इस्तेमाल बारूदी सुरंगों, केमिकल बमों और हथियारों को पहचानने के लिए होता है. किसी भी खोजी डॉग की सूंघने की क्षमता एक व्यक्ति से 42 गुना ज्यादा होती है. इन्हें स्नीफर डॉग कहा जाता है. इसके अलावा किसी चीज को खोजकर निकालने या किसी का पीछा करने में माहिर डॉग्स ट्रैकर और नारकोटिक्स कहते हैं. इनका इस्तेमाल पुलिस इन्वेस्टिगेशन जैसे चोरी, मर्डर, नारकोटिक्स की घटनाओं में होता है.

मध्य प्रदेश पुलिस देसी नस्ल के डॉग्स के साथ पहली बार काम कर रही है. अब देसी मिलकर कुल 149 डॉग्स पुलिस विभाग के पास हैं. जिन 19 देसी डॉग को पुलिस विभाग में शामिल किया गया है, उनके नाम सिंबा, सोमू, हेजल, चिली, ऐली, लोगन, कैली, रजिया, नोरा, चार्ली, लियो, लीजा, रिया, रोज, हार्ली, चिप्पी, सुल्तान, राज और वीरा हैं.  इसमें 12 स्निफर डॉग की ड्यूटी हैंडलर के साथ वीआईपी ड्यूटी, लॉ एंड ऑर्डर और 7 ट्रैकर की ड्यूटी पुलिस इन्वेस्टिगेशन में लगाई गई है. देसी डॉग वीरा के हैंडलर संदीप धुर्वे ने कहा कि एक बच्चे की तरह डॉग को पाला जाता है. उनसे टैचमेंट हो जाता है. उसके रिटायरमेंट तक हमें उसके साथ रहना पड़ता है. उसकी देखरेख से लेकर उसके जीवन में हमारी पूरी भागीदारी रहती है.
ये है देशी और विदेशी डॉग में अंतर

देशी नस्ल: इसमें तमिलनाडू से राजा पलायन, कन्नी, कोंबई, चिप्पीपराई ब्रीड, हरियाणा से रामपुर हाउंड ब्रीड, कर्नाटक से मुधोल ब्रीड डॉग्स हैं.

खूबी: देशी डॉग विदेशी के मुकाबले फुर्तीले रहते हैं. मुधोल हाउंड की देखने की क्षमता पैनी होती है. कोंबई चालाक, ताकतवर और वफादार होता है. चिप्पीपराई शिकार में माहिर होता है. कन्नी बेहद फुर्तीले और टारगेट तक पहुंचने में तेज होते है. राजापलायम उत्कृष्ट प्रहरी होते हैं. रामपुर हाउंड सबसे तेज, रफ्तार और मजबूत जबड़े वाले होते हैं.

कीमत: कीमत में देसी ब्रीड विदेशी ब्रीड से कई गुना सस्ते हैं. देसी ब्रीड में सबसे मंहगा मुधोल ब्रीड है जो करीब 10 हजार का है. वहीं सबसे सस्ता कोंबई तीन हजार का है, जबकि विदेशी ब्रीड जर्मन शेफर्ड 45 हजार और गोल्डन रिट्रीवर की कीमत 80 से 85 हजार है.

खर्चा: एक देशी डॉग का एक महीने का खर्चा करीब 8 से 10 हजार रुपए आता है, जबकि विदेशी डॉग खर्चा सबसे ज्यादा होता है.

सर्विस: देसी डॉग्स के साथ काम करना ज्यादा बेहतर है. ये देश के वातावरण से परिचित रहते हैं तो जल्दी ढल जाते हैं और बीमार नहीं होते हैं, जबकि विदेशी डॉग का ज्यादा ख्याल रखना पड़ता है.

डीएसपी नीरज ठाकुर ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुलिस फोर्स में देसी डॉग के इस्तेमाल की बात कही थी. मध्य प्रदेश पहला राज्य है जहां पर इन डॉग की ड्यूटी लॉ एंड ऑर्डर वीआईपी ड्यूटी और पुलिस इन्वेस्टिगेशन में लगाई गई है.
एक पुलिस जवान की तरह ट्रेनिंग, एग्जाम

9 महीने की ट्रेनिंग देसी डॉग की एक पुलिस जवान की तर्ज पर होती है. एक डॉग के साथ एक पुलिस कांस्टेबल उसका हैंडलर रहता है. 9 महीने की ट्रेनिंग के दौरान हैंडलर साथ रहता है और डॉग के रिटायरमेंट तक उसके साथ ही काम करता है. पहले महीने हाउस मैनर्स की ट्रेनिंग दी जाती. इसके बाद अगले तीन महीने आज्ञाकारी प्रशिक्षण होता हुआ. इसमें उन्हें ऑडर्स फॉलो करने की ट्रेनिंग होती है. पांचवे महीने में गंध पहचानने की ट्रेनिंग होती है. इसके अलावा रिफ्यूजिंग फूड, रिट्रीविंग समेत अन्य तरह की ट्रेनिंग दी जाती है.

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9 महीने की फिजिकल ट्रेनिंग होने के बाद पुलिस मुख्यालय पर गठित आईपीएस अफसरों की कमेटी फाइनल परीक्षा और टेस्ट लेती है इसके बाद ही डॉग को जिलों का आवंटन किया जाता है. सभी डॉग का 400 नंबर का एग्जाम हुआ और सात अलग-अलग टेस्ट भी हुए. इस दौरान हैंडलर की परीक्षा भी फिजिकल और रिटर्न होती है.

डॉग को मिल रही सरकारी सुविधा

भर्ती होने से पहले, भर्ती होने के बाद और रिटायरमेंट के दौरान एक पुलिस अधिकारी कर्मचारी की तरह डॉग को सभी सरकारी सुविधा मिलती है. इन्हें एक पुलिसकर्मी की तरह आवास का आवंटन किया जाता है. डॉग को केनल में रखा जाता है और मौसम के हिसाब से उसमें कूलर, पंखे हीटर, बिस्तर, साफ सफाई की व्यवस्था की जाती है. डॉग को सैलरी तो नहीं मिलती है, लेकिन सुविधा जरूर पुलिसकर्मी से ज्यादा मिलती है. सुबह के समय एक डॉग को दूध रोटी, शाम को मटन रोटी के साथ डॉक्टर के अनुसार डाइट दी जाती है. एक पुलिसकर्मी की तरह मेडिकल सुविधा मिलती है. डॉग के लिए रूटीन मेडिकल चेकअप, एंबुलेंस, एक्सपर्ट डॉक्टर की व्यवस्था रहती है. ट्रांसपोर्ट सुविधा के तहत एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए अलग से सीट रिजर्व होती है.
रिटायरमेंट के बाद भी मिलती सुविधा
किसी भी डॉग के लिए पुलिस विभाग सब कुछ होता है, इसलिए उनकी 10 साल तक पुलिस डिपार्टमेंट में सेवा ली जाती है. 10 साल की सर्विस के बाद एक्सपर्ट की टीम डॉग का फिजिकल चेक अप करने के बाद 1 से 2 साल और उसकी सर्विस ले सकती है लेकिन अमूमन 10 से 12 साल की सर्विस के बाद डॉग रिटायर्ड हो जाता है. लेकिन इसके बावजूद भी रिटायरमेंट के बाद उसे सभी सुविधा मिलती है. रिटायर्ड हुए डॉग को भोपाल के 23 वी बटालियन डॉग पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में रखा जाता है. उन्हें पुलिस विभाग सभी सुविधाएं उपलब्ध कराता है.

Tags: Bhopal news, Mp news

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