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OPINION: गोंगपा और जयस का ‘जिंदा’ होना बढ़ा सकता है कांग्रेस-भाजपा की तकलीफ

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एमपी में नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में भले ही कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपनी पीठ थपथपा रहे हों और पार्टी के बड़े नेताओं से बधाई संदेश वाले ट्वीट करवा रहे हों लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस चुनाव ने दोनों के पसीने छुड़ा दिए. नगरीय निकाय चुनाव में तो ओवैसी की पार्टी से लेकर आम आदमी पार्टी की तक संज्ञान में आने लायक एंट्री हो गई है. पंचायत चुनावों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और जयस की मौजूदगी भी बहुत कुछ कह रही है. पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने इन दोनों ही पार्टियों को एक तरह से अपना पिछलग्गू बना दिया था. इस बार न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा के लिए आदिवासी बहुल इलाकों में अलार्मिंग है स्थिति.

भाजपा के लिए इस लिहाज से और ज्यादा कि आदिवासी बहुल कुछ इलाकों में इन छोटे चुनावों में भी उसे अभी तक अपनाया नहीं गया है. डिंडोरी जिले की तीन जनपद पंचायत पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का कब्जा रहा. नतीज़ों के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ये चुनाव नतीजे राज्य की भाजपा सरकार के पिछले कई वर्षों के जनकल्याण संबंधी कार्यों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों पर जनता की मुहर है। सीएम चौहान ने इस संबंध में राज्य सरकार की जनकल्याण से जुड़ी नीतियों और ढांचागत सुविधाओं के विकास से संबंधित योजनाओं का हवाला भी दिया और कहा कि इन सभी के प्रति भी जनता ने अपना सकारात्मक रुख प्रदर्शित किया है.

ऐसा नहीं है कि इतने लंबे समय से सूबे की कमान संभालने वाले शिवराज सिंह चौहान कुछ आदिवासी बहुल जिलों में भाजपा की कमजोरी को भांप नहीं रहे हैं. उन्होंने खुद नर्मदापुरम जिला और डिंडोरी जिले का जिक्र किया और बोले वहां पर भी भाजपा समर्थित जनप्रतिनिधि के जिला पंचायत अध्यक्ष बनने की उम्मीद इसलिए थी, कि वहां पर भी भाजपा से जुड़े जनप्रतिनिधि बहुमत में थे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि भाजपा संगठन स्तर पर इन मामलों को दिखवाया जाएगा.

दिलचस्प ये है कि यदि कुछ जिलों में आदिवासी भाजपा से दूर जाता दिख भी रहा है तो कांग्रेस के करीब नहीं आ रहा है. कई जगह तो कांग्रेस जीतते जीतते हारी भी तो इन्हीं तीसरी पार्टियों के कारण. यानी साफ है कि इन दलों को जिन्हें पिछले विधानसभा चुनावों के बाद किनारे पर मान लिया गया है, वो न केवल जिंदा हैं बल्कि और ताकतवर होती जा रही हैं. विधानसभा चुनाव के रोचक होने की संभावना इस वज़ह से और बढ़ जाती है क्यूंकि अब स्थानीय प्रत्याशी का आकलन वहां का आदिवासी वोटर करने लगा है जिसकी झलक नगरीय निकाय चुनाव में दिखी और पंचायत चुनाव में भी. उम्मीद की जानी चाहिए कि अपने-अपने आंकड़ों की जीत का सेहरा बांधकर उत्साह से घूम रहे दोनों प्रमुख राजनीतिक दल विधानसभा चुनावों से पहले इस अंतर को पाटने का प्रयास जरूर करेंगे.

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