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रिपोर्ट- मोहित शर्मा
करौली. राजस्थान के करौली का लाल पत्थर अपनी दुर्लभ चमक के लिए विख्यात है. लाल पत्थर से बनी हुई इमारतों में एक नेचुरल चमक होती है. लाल पत्थर करौली और धौलपर में बहुतायत से पाया जाता है. बीते दशकों में करौली की पहचान यहां के लाल पत्थर से ही होती थी. यहां का पत्थर व्यवसाय काफी फलता फूलता हुआ करता था किंतु खनन पर रोक लगने के कारण यह पत्थर व्यवसाय मंद पड़ गया है.
करौली सैंड स्टोन के नाम से विख्यात इमारती लाल पत्थर मुख्यता करौली के डांग क्षेत्र से निकलता है. डांग क्षेत्र निकलने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों और डांग क्षेत्रों में यह पत्थर रोजगार का मुख्य स्रोत है, जिसके चलते करौली जिले की एक चौथाई आबादी प्रत्यक्ष रूप से खनन कार्य पर निर्भर है. सैकड़ों वर्षो से करौली क्षेत्र के भूभाग के गर्भ से निकलने वाले इस पत्थर का उपयोग रियासत काल में बनाए गए किलो और महलों के निर्माण में बड़े पैमाने पर देखने को मिलता है. भवनों को मजबूती प्रदान करने और प्राकृतिक चमक के लिए यह पत्थर दुनिया भर में मशहूर है.
करौली में स्थानीय कारीगर बलुआ पत्थर की 150 में से 140 इकाइयों में चौखट और स्लैब बनाते हैं. लाल पत्थर सबसे सस्ता और टिकाऊ होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों सहित, मध्यम वर्गीय परिवार और गरीब परिवार इस पत्थर का सबसे अधिक उपयोग करते हैं इस पत्थर की 10 रुपए से लेकर 70 रुपए वर्ग फुट तक इसकी खरीद-फरोख्त की जाती है.
जानिए इस पत्थर की विशेषताएं
यह पत्थर ना तो जल्दी ठंडा होता है और ना ही गर्म, पानी पड़ने पर इसमें निखार आता है, इस पत्थर में नक्काशी का काम बहुत सुंदरता व आसानी से किया जा सकता है और रूनी नहीं लगने के कारण यह लंबे समय तक चलने वाला बालुई पत्थर है, जिसकी उम्र सीमा लगभग हजारों वर्षों तक मानी जाती है.
करौली के इस दुर्लभ लाल पत्थर के दीदार दिल्ली के लाल किले और देश के संसद भवन तक किए जा सकते हैं. जिसे धौलपुर स्टोन के नाम से भी जाना जाता है.
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Tags: Karauli Municipal Council, Karauli news, Rajasthan news, Stone
FIRST PUBLISHED : September 09, 2022, 16:46 IST
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