गुजरात से मिट्टी लाकर बना रहे इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाएं, बढ़ा कारोबार, फिर भी क्यों परेशान हैं कारीगर?
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मुकुल परिहार/ जोधपुर. भद्रपद सुद्ध चतुर्थी को मनाई जा रही गणेश चतुर्थी पर इस बार राजस्थान के जोधपुर में अलग ट्रेंड देखने को मिल रहा है. जोधपुर के बाजारों में मिट्टी से बने इक्को फ्रेंडली गणेश की प्रतिमा खरीदने की काफी डिमांड देखने को मिल रही है. पर्यावरण बचाने की दृष्टि से प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) से बनी गणेश प्रतिमा की तुलना में मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा को खरीदने का क्रेज भी खासा दिख रहा है.
जोधपुर के बाजारों में 3 इंच से लेकर 3 फीट तक के इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बाजारों में उपलब्ध है. जोधपुर के रोटरी चौराहा के पास इक्को फ्रेंडली गणेश प्रतिमा की दुकान सजाई मूर्तिकार तेजाराम पिछले 6 सालों से इक्को फ्रेंडली गणेश प्रतिमा को बनाकर उन्हें बेचने के साथ ही पर्यावरण बचाने का भी संदेश दे रहे हैं.
गुजरात से लाई जा रही विशेष किस्म की चिकनी मिट्टी
गुजरात से विशेष किस्म की चिकनी मिट्टी लाकर उन्हें कड़ी मेहनत कर मूर्तिकार स्वरूप प्रदान कर रहे हैं. प्लास्टर ऑफ पेरिस की तुलना में इक्को फ्रेंडली गणेश प्रतिमा में किसी प्रकार का केमिकल व अन्य किस्म के रासायनिक रंगों का प्रयोग भी नहीं किया जाता. जोधपुरवासियों में भी इस प्रतिमा को खरीदने का खासा उत्साह है.
मूर्तिकारो को नही मिल रहा पूरा मेहनताना
इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बना रहे तेजाराम बताते हैं कि मिट्टी से बने गणेश प्रतिमा को खरीदने का खासा उत्साह तो दिख रहा है, लेकिन उन्हें उसकी पूरी मेहनत का मेहनत आना भी नहीं मिलता। एक मूर्ति बनाने में उनको 2 से 3 दिन का समय लगता है और 3 इंच से 3 फुट तक की प्रतिमा वह बना रहे है. तेजाराम बताते है कि मूर्ति बनाने में मेहनत लगती है उतनी 1 दिन की हाजरी भी उनको नहीं मिल पाती है.
50 से 5000 रुपये तक के इक्को फ्रेंडली गणेश प्रतिमा है उपलब्ध
इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बनाने वाले तेजाराम बताते हैं कि उनके पास 50 से 5000 रुपयों तक की इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा उपलब्ध है. एक माह पहले से वह मूर्ति बनाने का काम शुरू कर देते हैं. गणेश चतुर्थी से पूर्व तक वह लगभग सभी मूर्तियां बनाकर उन्हें बेचने का काम शुरू करते हैं.
पीओपी की तुलना में क्यों खास है इक्को फ्रेंडली मूर्ति
प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) से बनी मूर्ति की तुलना में मिट्टी से बनी इक्को फ्रेंडली प्रतिमा पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती है व विसर्जन के दौरान आसानी से पानी में घुल जाती है, जिससे पानी को भी दूषित होने से बचाया जा सकता है. राजस्थान सहित कई राज्यों में पीओपी की बनी मूर्ति पूरी तरह से बैन भी किया गया है. विसर्जन के दौरान भी पीओपी से बनी मूर्तियां आसानी से घुलती नहीं हैं और महीनों तक नदी तालाब को प्रदूषित करती रहती हैं.
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FIRST PUBLISHED : August 31, 2022, 10:02 IST
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