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चिड़ावा का खास पेड़ा, विदेशी भी मुरीद, सालाना करोड़ों का कारोबार, ऑनलाइन भी कर सकते हैं ऑर्डर, जानें सबकुछ

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IMTIYAZ ALI

झुंझुनूं. राजस्थान के झुंझुनूं जिले के अधिकांश कस्बे किसी न किसी मिठाई के लिए प्रसिद्ध हैं. यहां के पेड़े और राजभोग की अलग पहचान है. इनमें भी पेड़े सबसे अलग हैं. चिड़ावा, नवलगढ़ और मुकुंदगढ़ के पेड़े देशभर में प्रसिद्ध हैं. विदेशों में रहने वाले प्रवासी भी इनके मुरीद है. अकेले चिड़ावा कस्बे की बात करें तो यहां पेड़ों का सालाना कारोबार करीब 70 करोड़ रुपये का है. इस काम से जुटे करीब 8 हजार लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है. कस्बे में प्रतिदिन लाखों रुपये का पेड़ा बिकता है. कभी यहां सिर्फ एक दुकान हुआ करती थी, आज असंख्य दुकानें खुल चुकी हैं. यहां का पेड़ा देशभर में प्रसिद्ध है. हरियाणा-दिल्ली जाने वाली बसों में पेड़ा राजस्थान से बाहर जाता है. देश के कई बड़े शहरों, खासकर पूर्व और दक्षिण भारत के अधिकांश शहरों में ऑर्डर पर यहां से पेड़ा भेजा जाता है.

यहां के पेड़ों की खास बात यह है कि ये लंबे समय तक खराब नहीं होते, क्योंकि इनमें शुद्ध मावा काम में लिया जाता है. बनाने की तकनीक भी ऐसी है कि इन्हें कितने भी दिन सुरक्षित रखा जा सकता है. पानी और दूध की घुटाई कर मावा तैयार करने में कड़ी मेहनत लगती है. यहां के पेड़े साइज में बड़े होते हैं. एक किलो में 20 पेड़े चढ़ते हैं.

सालासर और खाटू में होने वाली सवामणियों ने बढ़ाया कारोबार
चिड़ावा में इस कारोबार से जुड़े मनोज फतेहपुरिया कहते हैं कि जब से सालासर, खाटू और देश के अन्य धार्मिक स्थलों पर सवामणी करने का ट्रेंड बढ़ा है, तब से चिड़ावा के कारोबार ने भी गति पकड़ी है. पहले सिर्फ एक दो किलो खरीदने वाले ही थे, लेकिन सवामणियों के लिए 50 किलो से खरीद शुरू होती है. इस वजह से कारोबार बढ़ गया. इस कारोबार से क्षेत्र के हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है. पशुपालक से लेकर दूध सप्लायर, मावा तैयार करने वाले और फिर पेड़ों की पैकिंग करने से लेकर उसकी सेल करने तक में जुड़े लोगों को रोजगार मिला हुआ है. पहले पेड़ा बाहर भेजने के साधन नहीं थे, इसलिए भी बिक्री कम होती थी. अब बस, ट्रेन आदि की खूब सुविधाएं हैं. इससे कारोबार को गति मिली है.

चिडा़वा में 50 दुकानें ऐसी जहां सिर्फ बनता है मावा 

व्यापारी मनोज फतेहपुरिया के अनुसार चिड़ावा कस्बे में कम से कम 50 कारोबारी ऐसे हैं जो सिर्फ मावा ही बनाते हैं. आसपास के गांवों से दूधिए दूध लाकर इन्हें देते हैं और यह मावा तैयार करते हैं. यहां से तैयार मावा पेड़ा कारोबारियों तक पहुंचता है. इसके बाद पेड़ा कारोबारी उसकी घुटाई करके पेड़े तैयार करते हैं. चिड़ावा एरिया में अकेले दूध के कारोबार से 200 से अधिक सप्लायर जुड़े हुए हैं. यह गांवों से दूध लाकर मावा तैयार करने वालों तक पहुंचाते हैं.
दो आंख वाला पेड़ा सिर्फ चिड़ावा का

चिड़ावा के पेड़ों की खासियत भी अनूठी है. यहां के पेड़े में दो आंखें होती हैं यानी पेड़े में अंगुली का निशान एक नहीं, बल्कि दो होते हैं. बाकी देश में कहीं भी ऐसा नहीं होता है. सब जगह के पेड़े में सिर्फ एक ही निशान होता है. चिड़ावा के कारोबारी इसे दो आंख वाला पेड़ा कहते हैं यानी दो अंगुलियों के निशान सिर्फ चिड़ावा के पेड़ों पर ही होते हैं. बाकी देशभर में जहां भी पेड़े बनते हैं, उनके एक ही अंगूली का निशान होता है. हालांकि देखादेखी में अब कई जगह दो निशान लगाने लग गए, लेकिन चिड़ावा के पेड़ों की दो आंखें देखते ही इसके मुरीद इसे पहचान लेते है. दो आंख के अलावा चिड़ावा का पेड़ा साइज में बड़ा और चपटा होता है. बाकी पेड़े साइज में छोटे और मोटे होते हैं.
कैसे पहुंचे चिड़ावा के पेड़ों की दुकान तक

चिड़ावा के पेड़ों के मुरीद हैं तो इन्हें खरीदने के लिए आप ऑनलाइन ऑर्डर भी कर सकते हैं. चिड़ावा आकर खरीदना चाहें तो बस या ट्रेन की सुविधा है. दिल्ली से चिड़ावा की दूरी 200 किमी है. दिल्ली से कई ट्रेन चिड़ावा आती हैं. इसी तरह जयपुर से चिड़ावा की दूरी 210 किमी है. ट्रेन और बस की सुविधा है. बस में करीब चार घंटे का समय लगता है. खुद का वाहन हो तो तीन घंटे में सफर पूरा किया जा सकता है. इसके लिए जयपुर से सीकर, झुंझुनूं होते हुए चिड़ावा पहुंचा जा सकता है. झुंझुनूं से चिड़ावा की दूरी 30 किमी है. यहां से गाड़ी किराया कर पहुंच सकते है.
चिड़ावा में कहां-कहां है पेड़ों की प्रसिद्ध दुकानें

यूं तो पूरे चिड़ावा में पेड़ों की दर्जनों दुकानें हैं, लेकिन जो प्रसिद्ध दुकानें हैं वे चिड़ावा के मैन बाजार में है. चिड़ावा के मैन बाजार में स्थित कल्याणरायजी मंदिर चौक एरिया में बड़ी दुकानें हैं, जो सर्वाधिक कारोबार करती है. यहां पहुंचने के लिए चिड़ावा रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी महज दो किमी है. ऑटो लेकर पहुंच सकते है. इसी तरह चिड़ावा के बस स्टैंड से यहां तक की दूरी सिर्फ डेढ़ किमी है. कार या ऑटो लेकर पहुंच सकते है.

संजय मिष्ठान भंडार

झुंझुनूं जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर चिड़ावा कस्बे के मुख्य बाजार में श्री कल्याण राय मंदिर के पास संजय मिष्ठान भंडार की दुकान स्थित है. इस दुकान को श्याम जी पेड़े वाले की दुकान और काशू हलवाई की दुकान के नाम से भी पहचाना जाता है. ना केवल चिड़ावा में, बल्कि प्रमुख धार्मिक स्थल सालासर, खाटूश्यामजी के अलावा देश की राजधानी दिल्ली समेत अन्य जगहों पर ब्रांच संचालित है.

नाहर सिंह के पेड़े की दुकान
चिड़ावा कस्बे में नया बस स्टैंड से कबूतरखाना जाने वाली रोड पर नाहर सिंह राव के पेड़े की दुकान है. इनकी एक ब्रांच पिलानी बाईपास पर भी है. वहीं देश के किसी भी कोने में सप्लाई के लिए व्यवस्था है.
लालचंद पेड़ेवाले की दुकान
चिड़ावा कस्बे में पंचायत समिति कार्यालय के सामने लालचंद पेड़े वाले की दुुकान स्थित है. पहले एक ही दुकान हुआ करती थी, लेकिन अब दो भाइयों ने अलग-अलग दुकानें कर ली है जिनका स्वाद आज भी एक जैसा ही है. इन दोनों दुकानें की ब्रांच चिड़ावा के ओजटू गांव के पास और झुंझुनूं शहर में भी है.

Tags: Jhunjhunu news, Rajasthan news

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