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छत्तीसगढ़ी में पढ़ें- हमर भोजली दाई के सोने सोन के अचरा

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एती गांव म पिवराए देंह के मन ह गवना के पहिली भोजली के उमंग कस उमिहावत हे. सावन महीना म अंजोरी पाख के आठे के दिन भोजली खातिर कड़रा घर ले टोपली, पर्री अउ कुम्हार घर ले खातु माटी लाने के नेंग हे. भोजली बोवइया ह नवे के दिन उपास रहि के सराजाम के इंतजाम करे म जूट जथे. टूकनी म खातु माटी भर के गेहूं के बांवत करे के बाद माटी के दीया बार के पिंयर पानी छिंच के कुमकुम लगा के पूजा करथे. सात दिन ले रोज भोजली दाई के सेवा सटका होथे. भाई बहिनी के पावन तिहार भोजली ल खास तौर ले छत्तीसगढ़ म लोधी जात के मन गजब मानथे. भोजली तिहार कोनो कहानी किस्सा नोहे बल्कि ए तो इतिहास ले जुड़े हे.

मोहबा के राजकुमारी इन्द्रवली ह हर बच्छर किरती सागर म भोजली सरोवय. एक समे अइसे अइस जब राजा परमाल के राज ल चारों कोती ले दिल्ली के पृथ्वी राज चैहान के सेना ह घेर लीन. ठउंका के समे मोहबा म जबर समसिया खड़ा हो जथे के भोजली कइसे सरोए जाए. इन्द्रावली के भोजली सरोए के परन ल निभाए खातिर उदल ले बीड़ा उठवाथे. तभे तो उदल दुसमन के सेना ल खेदार के परमाल के दुलौरिन के परन ल पूरा करथे. इन्द्रावली के भोजली उगोना के बात ह आल्हा म घलो पढ़े बर मिलथे-
जंह बीड़ा दीन्ह मड़ाय
कउनो वीर मोहबा के रे
जेहा बीड़ा लेहू उठाय
अउ इन्द्रावली के भोजली ल रे
तरिया म देहू सरवाय

लोधी जात के मन जउन लड़की के सावन म भोजली उगोना होथे ओखर गवना अवइया बइसाख म देथे. धीरे-धीरे यहू ह नंदावत जात हे. उगोना लड़की ह सात दिन ले बांटी भांवरा बनाथे. सातवां दिन सबो ल सकेल के कुंआ बावली म ठण्डा कर देथे. सात दिन के सेवा जतन करे के बाद पुन्नी (रक्षा बंधन) के दिन भोजली ल राखी चघा के परसाद बर चनादार भिंगो देथे. चना कस कतको सपना ह फूलत रहिथे. उगोना वाले लड़की ह नवा साया, लुगा, पोलखा, चुरी चाकी पहिर के जब सिंगार करथे तब जो अघात सुन्दर दिखथे. धान के पोटरी पान कस चमकत रहिथे लड़की के अंग-अंग ह. कान के दवना ह लड़की के रुप ल अउ निखार देथे. लोगन मन के अइसे मानना हे के कान म दवना पान खोंचे ले भूत-प्रेत, मरी-मसान ह तीर तखार म नइ ओधय अउ टोनही टम्हानी के आंखी ह पटपट ले फूट जथे. उगेना के रसुम ल निभाए खातिर लड़की ह भोजली ल मुड़ म बोहि के पर्री के भोजली ल जेवनी हाथ म धरे सब ले आगु म खड़े रहिथे. गांव वाने मन जान डरथे के एसो फलानी के गवना होही. लड़की के पाछू म पारा मुहल्ला अऊ सगा-सोदर के नोनी मन भोजली ल बोही के खड़े रहिथे. देखे ले अइसे लागथे कि पाछू खड़े नोनी मन अपन उगोना के बाट जोहत हे. घम-घम ले जागे भोजली ल सियान मन के अनुभवी आंखी ह देख के जान डरथे के एसो समे सुकाल होही.

भोजली ह गांव के सबो गली म घुमत गउरा चउंरा डाहर के होवत तरिया जाथे. हरियर पिंवरी भोजली के रेम ल देखे ले अइसे लागथे जानो- मानो घनहा ले धान अउ भर्री ले कोदो ह गली किंदरे बर आए हे. गांव भर के लइका सियान भोजली कार्यक्रम म संघरत गीद गावत ठण्ड़ा करे खातिर तरिया पहुंचथे.
देवी गंगा, देवी गंगा, देवी हे दू गंगा
हमर भोजली दाई के सोने सोन के अचरा
हमर देवी दाई के बड़े-बड़े नखरा
एक ठन कोदो के दूई ठन भूंसा
नान-नान हवन भोजली झन करहू गुस्सा
अहो भोजली गंगा, अहो भोजली गंगा

गंगा पखारे तोर नवमुठा तिरनी, दुघे पखारे लामी केस. गीद गावत तरिया के पानी करा पार म भोजली के पांव पखारे जाथे. भोजली के पूजा पाठ कर के पानी म विर्सजन कर देथे. भोजली ल पानी म सरोए के बाद भोजली ल पानी भीतर उखान के अउ टोपली ल खलखल ले धो के पार म लान लेथे. चनादार, सक्कर, खीरा अउ खुरहोरी के परसाद के संग दू-दू डारा भोजली ल घलो बांटथे. भोजली पा के सब झन धन्य हो जथे. कतको मन जेखर से मन मिल जथे ओखर सन मितान बद डरथे. मितानी के रिश्ता पीढ़ी दर पीढ़ी रहिथे. रद्दा-बाट, हाट- बजार अउ खेत खार म कोनो मितान संग भेंट हो जथे त सीताराम भोजली कहि के एक दूसर ल सम्बोधित करथे. तरिया म भोजली ल ठण्डा करे के बाद सुआ नाचथे. गीद म नारी के पीरा ह जगजग ले झलकथे. नारी के पीरा ल नारिच जानथे. उगेना होय के बाद ससुरार म काखर संग रइहंव मन बांध-

काखर संग खाहूं, काखर संग खेलहूं रे सुआ ना
काखर संग रहूं मन बांध, रे सुआ ना
सास संग खाबे, ननद संग खेलबे
छोटका देवर संग मन बांध
ना रे सुआ ना-

तरिया के पार म तो सुआ नाचबे करथे. घर आए के बाद लड़की मन छै सुआ नाचथे. भेंट म जतना रुपिया पइसा मिलथे ओला आपस म बराबर बांट लेथे. आखिरी के सातवां घर ल उगेना वाले लड़की घर पुरोथे. उगेना लड़की ह महतारी के एक भांवर घुम के अपन पर्री ल उपर ले हाथ ल नीचे करके महतारी करा झोंकबाथे. महतारी ह अपन दुलौरिन के पर्री ल असीस देवत अंचरा म झोंकथे. भोजली उगोना होय के बाद लड़की ल सियानी मान के गवना दे जाथे.

भोजली कस दवना जंवारा, गोवर्धन, रैनी, महापरसाद, गंगाजल अउ तुलसी जल घलो बदथे. फूल फूलवारी ह मित-मितानी के चिन्हारी कराथे. सियान मन कथे काखरो न काखरो संग मितान बद ले रे भई सुख-दुख म काम आही. मितान बदई ल न वैवाहिक संबंध कही सकथन न रक्त संबंध. फेर हां मितानी के संबंध ह परिवार म रक्त संबंध कस हरे. मितान बदई ल फूल बदई घलो कहिथन. तभे तो मितान के दाई ल फूलदाई अउ मितान के ददा ल फूल ददा कहिथन.

मितान बदे बर कोनो दिन बादर तय नइ राहय. जादा तर तिहार बार के दिन बदथे. अंगना नही ते चैपाल म मितान बदे जाथे. मितान बदे बर नरियर, दूबी, धोती, माटी के दिया, कलस अउ गुलाल के जरुरत परथे. दूनो झन के आमने-सामने खड़ा होय बर दू ठन पीढ़हा हो जय त अउ बढ़िहा. गंगाजल बर गंगा गंगाजल, तुलसी जल बर तुलसी के पाना रहना जरुरी हे.

गंगा जल के परसाद पा के मितानी निभाए के परन करथे. गंगा जल महापरसाद ल चार के बीच म बदे जाथे. जंवारा, गोवर्धन, दवना ल रद्दा चलत बदे जा सकत हे. एमा कोनो नियम धियम के जरुरत नइ परय. दुबी ल एक दुसर के कान म खोंचे के बाद रुपिया, नरियर अउ धोती ल एक दूसर संग अदला-बदली करथे. जउन व्यक्ति मितान बदथे उंखर माईलोगन मन घलो आपस म फूल बद डरथे. मितान बदे के बाद परसाद बांटे जाथे. पुर जथे ते चाय पानी के घलव प्रबंध करथे. मीत-मीतान घर तीज-तिहार म सेर चाउंर (चाउंर, दार, रोटी, पीठा, मिरचा, नून) पहुंचा के एक दूसर के मया ल मजबूत करथे.

(दुर्गा प्रसाद पारकर छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)

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