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छत्तीसगढ़ी म पढ़व- लोक आस्था के पर्व-आठे कन्हैया

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छत्तीसगढ़ म आठे कन्हैया के दिन दीवाल म आठ ठन बाल चित्र चूड़ी रंग, स्याही, सेमी अउ भेंगरा ले बनाथे. आठे कन्हैया के दिन सब उपास रहिथे. आठे कन्हैया के दिन मड़िया तिखुर के पकवा के भोग लगाथे. छत्तीसगढ़ म कृष्ण जन्म होथे सोहर गाये जाथे जेमा कंस के कारागार म देवकी अउ वासुदेव के जीवन के त्रासद स्थिति के मार्मिक चित्रण हे-

दुख झन मानव कहे
बसदेव धीरज बंधावे
कारागृह म पड़े हवन दुनो
कतेक दुख ल साहन ओ
ललना किसन के जनम होय हवय…

हाथ म हथकड़ी लगे
पांव म लगे बेड़ी ओ
कइसे के हम दुनो मिली
दुख बड़ भारी ओ
ललना किसन के जनम होय हवय…

बोलत हवे राजा बसदेव
रानी देवकी रोवथे ओ
प्राणनाथ मोर जीवन के अधार
अब कइसे होही ओ
ललना किसन के जनम होय हवय…

रिमझिम रिमझिम पनिया
जब बरसन लागे ओ
दीदी बिजली ह कइसे चमचम
धमकन लागे ओ
ललना किसन के जनम होय हवय…

आठे के दिन मोर ये दे
पैदा भए कान्हा ओ
कृष्ण अंधियारी राते
पैदा भए कान्हा ओ
ललना किसन के जनम होय हवय…

कृष्ण के जनम लेते भार पहरादार मन सुत गे रिहिन हे, कारागाह के दरवाजा अपने आप खुल गे रिहिसे. तब ईश्वरी प्रेरणा से नवजात कृष्ण ल सूपा म रख के यमुना तट पार करके गोकुल पहुंचाए रिहिसे. छत्तीसगढ़ म आज घलो इही भावना के अनुरूप लइका के जनम होय के बाद ओला धान से भरे सूपा म सुताए जाथे. बाद म सूपा के धान ल जेचकी निपटइया सुईन दाई ल दे दे जाथे.

आठे के दिन जनम लेवइया लोक के कृष्ण कन्हैया ह नम्मी के दिन ग्वाल बाल मन के संग म गोपी मन के दूध दही लूटे बर उतावला हो जथे. छत्तीसगढ़ म आठे कन्हैया के बिहान दिन दही लूट संपन्न होथे. कतनो जघा दही लूटे के बाद नृत्य घलो करथे एला दहिकांदो नाच घलो केहे जाथे. येह आज के मटकी फोड़ के समान ही छत्तीसगढ़ के लोक परम्परा आय.

अइसे केहे जाथे छत्तीसगढ़ म वल्लभाचार्य के जनम बर चम्पारण के आठ मूर्ति के मान्यता हे. उही मूर्ति मन के समूह ल अष्ट कृष्ण केहे जाथे. ए आठो मूर्ति मन के नाम – श्रीनाथ, नवनीत प्रिय, मथुरा नाथ, विलनाथ द्वारिका नाथ, गोकुल नाथ, गोकुल चन्द्रमा अउ मदन मोहन हे. वल्लभ कुल के कृष्ण के छत्तीसगढ़ी अनुवाद आठे कन्हैया आय.

छत्तीसगढ़ मन वल्लभ कुल के अष्ट कृष्ण ल आठे कन्हैया के रूप म भले अपना ले हे फेर ओकर फलाहार तिखुर, बैचांदी, सिंघाड़ा अउ मड़िया आदि बने पकवान जनजातीय संबंध ल प्रमाणित करइया वनोपज के भोग ले तृप्त होथे. छप्पन प्रकार के भोग ले नही. जबकि वल्लभ समुदाय म श्रीकृष्ण बर 56 प्रकार के भोग के व्यवस्था करे जाथे. घर के बाल गोपाल मन ल घलो आठे कन्हैया के जन्मोत्सव के दिन आनी बानी के पकवा (पकवान) खाए बन मिलथे.

(दुर्गा प्रसाद पारकर छत्तीसगढ़ी के जानकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)

Tags: Articles in Chhattisgarhi, Chhattisgarhi

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