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झुंझुनूं का अनूठा भंडारा, खिलाई जाती है बाजरे की रोटी और कढ़ी, मेले में होता है 15 करोड़ का कारोबार

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IMTIYAZ ALI

झुंझुनूं . मालखेत बाबा के प्रति अटूट श्रद्धा के लिए जानी जाने वाली 24 कोसी परिक्रमा अब भामाशाहों, दानदाताओं और सेवादारों के लिए भी पहचानी जाने लगी है. 75 किमी की पथरीली डगर में विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से करीब 200 से अधिक भंडारे लगाए गए है. परिक्रमा मार्ग में लोहार्गल से लेकर चिराना, किरोड़ी धाम, कोट, शाकंभरी, सकराय, नागकुंड, भगोवा, टपकेश्वर, शोभावती, खाकी अखाड़ा, डाब पंडोरा, रघुनाथगढ़, रघुनाथगढ़ की नदी और गोल्याणा में जगह-जगह स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से लगाए गए भंडारों में औसतन चार दिन में 10 करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं. यानी एक भंडारे में औसतन चार से पांच लाख रुपए खर्च होते हैं. जो बड़े भंडारे होते हैं, उनमें सात से आठ लाख रुपए खर्च होते हैं, जबकि छोटे भंडारों में यह राशि तीन से चार लाख रुपए होती है.

भंडारों में हर कोई श्रद्धालुओं की सेवा काे आतुर रहता है. इन भंडारों में कहीं पर भोजन खिलाया जाता है तो कहीं पर नींबू की शिकंजी. कई जगह गन्ना ज्यूस तो कहीं पर छाछ पिलाई जाती है. पैकिंग पानी की बोतले तक भक्तों को बांटी जाती है. न्यूज 18 टीम ने किरोड़ी से लेकर गोल्याणा नदी तक लगाए गए इन भंडारों का जायजा लिया तो कई तरह की अनूठी बातें सामने आई. अनूठी बात इसलिए कि हर भंडारे की अपनी खास पहचान है यानी हर भंडारे का अपना मैन्यू तय होता है. श्रद्धालुओं को पता होता है कि कहां पर क्या खाने को मिलेगा.

अनूठा है भंडारा

खाकी अखाड़े से पहले सीकर जिले के शिश्यू के गणेश हनुमान मण्डल की ओर से लगाया गया भंडारा अपने आपमें अनूठा है. यहां पर पीले वस्त्रों में दो दर्जन से अधिक युवा सेवा करते नजर आए. इसके साथ ही पूरे मार्ग में यह एकमात्र ऐसा भंडारा था, जिसमें शुद्ध देसी खाना परोसा जा रहा है. यहां पर बाजरे की रोटी, कढ़ी, चटनी और शक्कर परोसी जाती है. इनमें एक दर्जन लड़कियां थीं. चार दिन में 5 से 6 लाख रुपए खर्च होते हैं. रानोली वाले पराेसते हैं खिचड़ी, हलवा, रोटी और सब्जीरानोली के लाेगों की ओर से टपकेश्वर महादेव के पास भंडारा लगाया गया है. टपकेश्वर महादेव सेवा समिति रानोली की ओर से 18 साल से लगाए जा रहे भंडारे में खिचड़ी, गेहूं की रोटी और सब्जी परोसी जाती है.

समिति के लक्ष्मणराम यादव, दीपचंद यादव, भगवानाराम मिस्त्री, हेमाराम बाजिया, डॉ. डीएन सरकार, न्यौलाराम यादव और त्रिलोकाराम आदि बताते हैं कि वे पिछले 18 साल से आपसी सहयोग से भंडारा लगा रहे हैं. यहां पर युवाओं के साथ बुजुर्ग भी श्रद्धालुओं की सेवा करते नजर आए. यहां 75 से अधिक सेवादार सेवा दे रहे हैं. 25 से अधिक मजदूर लगे हैं, जो भोजन तैयार करने का काम करते है. हेमाराम बाजिया आदि बताते है कि चार दिन चलने वाले भंडारे में पांच से 7 लाख रुपए खर्च होते है.

जलेबी-पकौड़ी के लगता है भंडारा
उदयपुरवाटी वाले कोट के पास खिलाते हैं जलेबी-पकौड़ी और हलवाकोट गांव के पास अग्रवाल समाज सेवा समिति की ओर से भंडारा लगाया गया है. समिति के रामबल्लभ खेराड़ी, रामजीवन शाह, अनिल चिरानिया और रमाकांत मित्तल आदि बताते हैं कि पांच दिन चलने वाले भंडारे में श्रद्धालुओं को नाश्ते में हलवा, जलेबी व पकौड़ी परोसी जाती है. दूध खरीदकर उसकी छाछ बनाते हैं और पूरे दिन छाछ भी पिलाई जाती है. रमाकांत मित्तल बताते हैं कि यहां पर कई सालों से भंडारा लगाया जा रहा है. भंडारे में 100 से अधिक सेवादार सेवा दे रहे हैं. इनमें करीब 30 महिलाएं है. इसके अलावा 80 हलवाई व मजदूर लगे हुए है. अनिल चिरानिया व रमाकांत मित्तल आदि बताते हैं कि पांच दिन चलने वाले भंडारे में औसतन आठ से नौ लाख रुपए खर्च होते हैं.

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पांच दिन चलता है मेला

पांच दिवसीय मेले में कारोबार 15 से 20 करोड़ रुपए कालोहार्गल के लक्खी मेले में पांच दिन में कारोबार भी करीब 15 करोड़ रुपए से अधिक होता है. मेले में स्थाई और अस्थाई दुकान लगाने वालों के मुताबिक मेले में करीब पांच से सात लाख श्रद्धालु शामिल होते है. प्रत्येक श्रद्धालु औसतन 300 रुपए खर्च करता है तो भी कारोबार 15 करोड़ रुपए का होता है. हालांकि इस बार श्रद्धालुओं की तादात पिछले बार 2018 के मेले की अपेक्षा कम है. फिर भी जानकारों का मानना है कि परिक्रमा से लेकर मेले के समापन तक औसतन एक श्रद्धालु 300 से लेकर 500 रुपए खर्च करता है. इसमें सर्वाधिक कारोबार अचार को होता है. हर श्रद्धालु कम से कम 100 रुपए का अचार जरूर खरीदकर ले जाता है. इसके अलावा परिक्रमा मार्ग में कोई गन्ना जूस, चाय, दान दक्षिणा आदि पर खर्च करता है. इसके अलावा कई तरह के घरेलू सामान भी खरीदे जाते है. आइसक्रीम का कारोबार भी लाखों में होता है. कुल मिलाकर परिक्रमा व मेले का कारोबार 15 करोड़ से अधिक होता है.

Tags: Rajasthan news

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