Take a fresh look at your lifestyle.

Teacher’s Day: मिलिए टीचर चंदन पाल से, बच्चों को फ्री में देते हैं किताबें, ड्रेस और जूते; 22 साल से चला रहे स्कूल

0 157

[ad_1]

ग्वालियर. ग्वालियर के पेंटर चंदन पाल 22 साल पहले तालीम से महरूम एक गरीब बच्ची की लाचारी नहीं देख सके. उसके बाद उन्होंने एक स्कूल की नींव रखी. इसमें चंदन ने बच्चों के लिए हर सुविधा मुफ्त में शुरू की. स्कूल में आने वाले गरीब बच्चों को चंदन शिक्षा के साथ ही बस्ता, किताबें, ड्रेस और जूते मुफ्त देते हैं. पेंटर के धंधे से कमाई कर चंदन अपने स्कूल का खर्चा चलाते रहे. साल 2008 में घोर आर्थिक तंगी में चंदन की पत्नी ने अपने गहने बेचकर स्कूल चलाया. इसके बाद साल 2013 में जब स्कूल आठवीं तक हो गया, तो महंगाई ने चंदन की कमर तोड़ दी.

मुफलिसी के इसी दौर में बॉलीवुड के सुपर स्टार सलमान खान ने चंदन की मदद की. सलमान को जब उनके स्कूल और आर्थिक हालात का पता चला तो उन्होंने शिक्षकों का वेतन देना शुरू किया. कोरोना काल में सलमान की ये मदद बंद हो गई. लेकिन, उसके बावजूद चंदन ने हार नहीं मानी और आज भी जैसे-तैसे गरीब बच्चों के बीच बिना स्वार्थ के तन, मन और धन से ज्ञान की अलख जगा रहे हैं.

एक सवाल ने बदल दी जिंदगी
दरअसल, 22 साल पहले चंदन से मासूम लड़की मुस्कान ने उनसे एक सवाल किया कि क्या उसके जैसे गरीब घर के बच्चों को पढ़ने-लिखने और स्कूल जाने का अधिकार नहीं. इस एक सवाल ने चंदन पाल की पूरी जिंदगी बदल दी. वह दिन में जितना भी कमाते हैं वह सब स्कूल के बच्चों के लिए लगा देते हैं. मुस्कान को स्कूल में भर्ती कराने के बाद उन्होंने सोचा कि हमारे समाज में एक मुस्कान नहीं है. हजारों ऐसी मुस्कान हैं जो पढ़ नहीं पाती. बस इसके बाद चंदन ने निशुल्क मुस्कान स्कूल खोल लिया. यहां पर बच्चों को निशुल्क पढ़ाई, किताब और ड्रेस दी जाती है. आज यह पेंटर अपने स्कूल के बच्चों पर गर्व करता है.

संघर्ष और जुनून की अनोखी कहानी
चंदन की कहानी किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं है. वह न पूंजीपति हैं, न कोई नेता. आम इंसान होने के बाद उन्होंने वह किया जो कोई नहीं कर सकता. उन्होंने साल 2000 में मुरार के लाल टिपारा इलाके में निशुल्क स्कूल शुरू किया. पहले साल किराए के मकान में 80 गरीब बच्चों से स्कूल शुरू, जो आज आठवीं तक हो चुका है. आज इसमें ढाई सौ बच्चे पढ़ाई करते हैं. शुरूआत में जब इस स्कूल की आधारशिला  चंदन ने रखी तो लोगों ने उसे पागल तक कहा. बच्चों को पढ़ाते देख लोग चंदन पर हंसते थे, लेकिन उपहास और परेशानियों को झेलते हुए उन्होंने स्कूल को आगे बढ़ाया. चंदन का संकल्प था कि वग बिना किसी सरकारी मदद के अपने दम पर स्कूल चलाएंगे. इस वजह से साल 2008 में स्कूल पर ताले डालने की नौबत आ गई, लेकिन उनकी पत्नि मीना ने अपने जेवरात बेचकर स्कूल चलाया.

Tags: Gwalior news, Mp news

[ad_2]

Source link

Leave A Reply

Your email address will not be published.